13. अपठित काव्यांश व गद्यांश Apathit kavyansh aur Gadyansh
हिन्दी भाषा और
अनुप्रयुक्त व्याकरण
खंड – ‘ख’ अवबोधन तथा
रचनात्मक अभिव्यक्ति
11 पाठ बोधन -
अपठित काव्य व गद्य
हिंदी अपठित काव्यांश/पद्यांश और गद्यांश (वैकल्पिक उत्तर) (MCQ)
अपठित काव्यांश
अपठित का अर्थ होता है जो
पढ़ा न गया हो। काव्यांश का अर्थ होता है- काव्य का अंश या हिस्सा। अपठित काव्यांश
को अपठित पद्यांश भी कहते है क्योकि पद्यांश का अर्थ पद्य का अंश या हिस्सा होता
है। काव्यांश और पद्यांश दोनों बातें एक ही है। इसमे कोई भी अंतर नहीं है। अपठित
काव्यांश से बच्चों में तत्काल सूझ-बूझ की क्षमता विकसित होती है। अपठित काव्यांश
के माध्यम से बच्चे की ज्ञानात्मक क्षमता का मूल्यांकन करना आसान हो जाता है।
पद्यांश संबंधी सामान्य
बातें:
- पद्यांश को ही काव्य
कहा जाता है।
- काव्य का स्तर, विचार, भाषा, शैली आदि प्रत्येक
दृष्टि से परीक्षा के स्तर के अनुरूप होता है ।
- काव्य का स्वरूप
साहित्यिक, वैज्ञानिक, तथा विवरणात्मक भी होता है।
पद्यांश पर
आधारित प्रश्नों को हल करने के लिए सुझाव :
● पद्यांश को ध्यानपूर्वक तथा समय की बचत करते हुए पढ़े
तथा उसकी विषय वस्तु तथा केंद्रीय भाव जानने का प्रयास करें।
● जिस विषय के बारे में कई बार बात पद्यांश में की जाये
वह उसका केंद्रीय भाव हो सकता है।
● जो तथ्य आपको पद्यांश पढ़ते हुए महत्वपूर्ण लगे उन्हें
रेखांकित अवश्य करें इससे आपका समय आवश्यक रूप से बचेगा ।
● प्रश्नों के सही उत्तर को ध्यानपूर्वक चिन्हित करें ।
● उत्तर पद्यांश पर आधारित होना चाहिए कल्पनात्मक उत्तर
न दें।
● पद्यांश में दी गई जानकारी को सही मानते हुए सही
उत्तर निकालने का प्रयास करे।
● प्रत्येक विकल्प पर विचार करके देखें कि उनमे से
किसके अर्थ की संगति सम्बंधित वाक्य के साथ सही बैठ रही है ।
अपठित काव्यांश-1
सुख-दुख मुस्काना नीरज से रहना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना।
मैं वीर नारी हूँ साहस की बेटी,
मातृभूमि-रक्षा को
वीर सजा देती।
आकुल अंतर की पीर राष्ट्र हेतु सहना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना।
मात-भूमि जन्म-भूमि
राष्ट्र-भूमि मेरी,
कोटि-कोटि वीर पूत
द्वार-द्वार दे री।
जीवन-भर मुस्काए भारत का अँगना,
वीरों की माता हूँ वीरों की बहना।
1- सुख दुख में मुस्कुराते हुए कैसे रहना चाहिए
(क) धीरज
(ख) धीर
(ग) शीर
(घ) वीर
2- आकुल अंतर की पीड़ा किसके लिए सहनी चाहिए
(क) राष्ट्र
(ख) समाज
(ग) जाति
(घ) धर्म
3- मातृभूमि जन्मभूमि.............. मेरी। उपयुक्त शब्द खाली स्थान में भरिए
(क) देवभूमि
(ख) गांव भूमि
(ग) शहर भूमि
(घ) राष्ट्रभूमि
4- भारत का अंगना कब तक मुस्कुराए
(क) जीवन भर
(ख) उम्र भर
(ग) मुट्ठी भर
(घ) पल भर
5- माता के लिए पर्यायवाची छांटिए
(क) जननी
(ख) दादी
(ग) नानी
(घ) बुआ
उत्तर- 1-क, 2-क, 3-घ, 4-क, 5-क
अपठित काव्यांश-2
हर किरण, तेरी
संदेश वाहिका
पवन, गीत तेरे गाता
तेरे चरणों को छूने को
लालायित हिमगिरि का माथा !
तुझसे ही सूर्य प्रकाशित है
आलोक सृष्टि में तेरा है,
संपूर्ण सृष्टि का रोम-रोम
चिर ऋणी, उपासक
तेरा है!
अगणित आकाश गंगाएँ
नन्हीं बूंदें तेरे आगे
तू आदि-अंत से मुक्त
काल-अस्तित्व हीन तेरे आगे!
हे जगत् नियंता, जगत-पिता,
है व्याप तेरा कितना ईश्वर,
तेरे चरणों में नत मस्तक,
कितनी धरती, कितने
अंबर!
1- ईश्वर के चरण चुमने के लिए कौन लालायित रहता है
(क) पहाड़
(ख) नदियां
(ग) दरिया
(घ) हिमगिरी
२- किसका रोम रोम तेरा चिर ऋणी है
(क) छोटी सृष्टि
(ख) बड़ी सृष्टि
(ग) कम सृष्टि
(घ) संपूर्ण सृष्टि
3- तू आदि..........से मुक्त। रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
(क) अब
(ख) तक
(ग) अंत
(घ) जब
4- सत्य कथन पर सही का चिन्ह लगाइए
(क) ईश्वर के चरणों में धरती अंबर नतमस्तक हैं
(ख) ईश्वर के चरणों में अंबर और हवा नतमस्तक हैं
(ग) ईश्वर के चरणों में धरती और आग नतमस्तक हैं
(घ) ईश्वर के चरणों में आग और हवा नतमस्तक
5- जगत पिता किसे कहा गया है
(क) ईश्वर
(ख) आज
(ग) संसार
(घ) समाज
उत्तर - 1-घ, 2-घ 3-ग, 4-क, 5-क
अपठित काव्यांश-3
क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास
गरल हो।
उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ माँगते रघुपति सिंधु किनारे ।
बैठे पढ़ते रहे छंद अनुनय के प्यारे-प्यारे।।
उत्तर में जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से।
उठी अधीर धधक पौरुष की आग राम के शर से।।
सिंधु देह धर 'त्राहि-त्राहि' करता आ गिरा शरण में।
चरण पूज दासता ग्रहण की, बँधा मूढ़
बंधन में ।।
सच पूछो, तो शर में
ही बसती है दीप्ति विनय की।
संधि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की। ।
1- 'क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास
गरल हो' पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना
चाहता है?
(क) दुर्बल व्यक्ति का जीवन बेकार है?
(ख) विषैले सर्प किसी को क्षमा नहीं करते
(ग) क्षमा करने की बात उसी व्यक्ति को शोभा देती है, जिसके पास बल हो।
(घ) दुर्बल व्यक्ति किसी को क्षमा करने योग्य नहीं होता।
2- 'पौरूष की आग राम के शर से' पंक्ति
में निहित अलंकार का नाम चुनिए
(क) रूपक
(ख) अनुप्रास
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) अनुप्रास
3- जब राम की प्रार्थना का समुद्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो राम ने क्या
किया सबसे उपयुक्त विकल्प चुनिए
(क) राम को बहुत क्रोध आ गया।
(ख) राम ने धनुष संभाल लिया।
(ग) राम ने सागर को सुखाने का निश्चय कर लिया।
(घ) राम ने सागर को सबक सुखाने के लिए अपने तरकश से एक अग्निबाण निकाल लिया।
4- 'संधि वचन संपूर्ण उसी का जिसमें शक्ति विजय की' पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) दुर्बल व्यक्ति कोई काम नहीं कर सकता।
(ख) दुर्बल व्यक्ति की बात कोई नहीं मानता।
(ग) दुर्बल व्यक्ति का सभी उपहास करते हैं।
(घ) दुर्बल व्यक्ति से संधि प्रस्ताव का कोई औचित्य नहीं है।
5- अनुप्रयुक्त पर्यायवाची शब्द छांटिए
(क) भुजंग
(ख) नाग
(ग) विष
(घ) उरग
उत्तर - 1-ग, 2-क, 3-घ, 4-घ, 5-ग
अपठित काव्यांश-4
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान
प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी जरूर, आँसू के
कण बरसाता चल।
सिसकियों और चीत्कारों से, जितना भी
हो आकाश भरा,
कंकालों का हो ढेर, खप्परों
से चाहे हो पटी धरा।
आशा के स्वर का भार, पवन को
लेकिन, लेना ही होगा,
जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा।
रंगों के सातों घट उड़ेल, यह
अँधियाली रंग जाएगी,
उषा को सत्य बनाने को जावक नभ पर छितराता चल ।
आदर्शों से आदर्श भिड़े, प्रजा
प्रज्ञा पर टूट रही,
प्रतिमा प्रतिमा से लड़ती है, धरती की
किस्मत फूट रही
आवर्तों का है विषम जाल, निरुपाय
बुद्धि चकराती है,
विज्ञान-यान पर चढ़ी हुई सभ्यता डूबने जाती है।
जब-जब मस्तिष्क जयी होता, संसार
ज्ञान से चलता है,
शीतलता की है राह हृदय, तू यह
संवाद सुनाता चल।
1- लोहे के पेड़ किसके प्रतीक हैं ?
(क) नकली पेड़
(ख) मशीनें
(ग) मशीनी संस्कृति
(घ) विज्ञान
2- नम होगी यह मिट्टी जरूर कहकर कवि किस ओर संकेत कर रहा है ?
(क) प्रेम के बल पर शुष्क हृदयों में भाव भरे जा सकते हैं
(ख) वर्षा न होने के कारण सूखी मिट्टी वर्षा आने पर नम जरूर हो जाएगी
(ग) सूखी आंखें फिर आंसुओं से नम हो जाएंगी
(घ) इतने आंसू बहाओ की मिट्टी गीली हो जाए
3- दुख और निराशा के वातावरण में मनुष्य का क्या कर्तव्य होना चाहिए ?
(क) सपने देखें और साकार करें
(ख) आशा का संचार करें
(ग) मिट्टी नम करें
(घ) विज्ञान यान पर सवार हो
4- प्रेम की भावना से इस भौतिक बौद्धिक संसार पर विजय पाई जा सकती है यह भाव
किस पंक्ति से व्यंजित हो रहा है ?
(क) जीवित सपनों के लिए मार्ग मुर्दों को देना ही होगा
(ख) आशा के स्वर का भार पवन को लेकिन लेना ही होगा
(ग) जब जब मस्तिष्क जयी होता संसार ज्ञान से चलता है
(घ) शीतलता की है राह ह्रदय, तू यह
संवाद सुनाता चल
5- विज्ञान यान में कौन सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास अलंकार
(ख) उपमा अलंकार
(ग) रूपक अलंकार
(घ) अन्योक्ति अलंकार
उत्तर- 1-ग, 2-क, 3-ख, 4-घ, 5-ग
अपठित काव्यांश-5
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।।
चिंता-रहित खेलना, खाना, वह फिरना निर्भय स्वच्छंद,
कैसे भूला जा सकता है, बचपन का
अतुलित आनंद?
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।,
बड़े-बड़े मोती से आँसू जयमाला पहनाते थे।
मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी,
नंदन वन-सी फूल उठी यह, छोटी-सी
कुटिया मेरी।
माँ ओ! कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आई थी
कुछ मुख में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी
मैंने पूछा-"यह क्या लाई ?" बोल उठी वह-“माँ
काओ"
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से मैंने कहा "तुम्हीं खाओ।"
1- कवयित्री को बार-बार बचपन की याद क्यों आती है?
(क) बचपन के दिन मधुर होते हैं
(ख) बच्चे सबको प्यारे लगते हैं
(ग) बचपन के दिन स्वच्छंद और उल्लासपूर्ण होते हैं
(घ) बचपन के दिन चिंता रहित होते हैं
2- बचपन की कौन सी बात बोली नहीं जा सकती
(क) कोई काम न करना
(ख) चिंता रहित जीवन उल्लासपूर्ण खेलना कूदना
(ग) मचलना
(घ) माता-पिता से अपनी हठ पूरी करवाना
3- नंदनवन का प्रयोग किसके लिए किया गया है
(क) अपनी बिटिया के लिए
(ख) अपने घर के लिए
(ग) स्वयं के लिए
(घ) अपने लिए और अपनी पुत्री के लिए
4- 'बड़े बड़े मोती से आंसू जयमाला पहनाते थे' पंक्ति में निहित अलंकार का नाम बताइए
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) अनुप्रास
5- तत्सम शब्द छांटिए
(क) मिट्टी
(ख) हाथ
(ग) मुख
(घ) आंसू
उत्तर - 1-ख, 2-क, 3-क, 4-ग, 5-ग
अपठित काव्यांश-6
आ रही रवि की सवारी
नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।
आ रही रवि की सवारी।
विहग बंदी और चारण,
भा रहे हैं कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी।
आ रही रवि की सवारी।
चाहता, उछलूँ
विजय कह
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है, राह में
बनकर भिखारी
आ रही रवि की सवारी।
1- 'कलि कुसुम से पथ सजा है' पंक्ति
में निहित अलंकार का नाम बताइए
(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) मानवीकरण
(घ) उत्प्रेक्षा
2- सूर्योदय का दृश्य कैसा नहीं लगता है
(क) सूर्योदय के समय हलचल हो जाती है
(ख) आकाश में दिखने वाले नक्षत्र धीरे-धीरे अदृश्य हो जाते हैं।
(ग) पक्षियों का कलरव सुनायी देता है जो सूर्य की वंदना के समान लगता है।
(घ) ऐसा लगता है मानो सूर्य को आता देखकर तारों की फौज भाग खड़ी होती है।
3- 'पर ठिठकता देखकर यह' पंक्ति से
कविता का क्या आशय है?
(क) कवि सूर्य को आता देखकर ठिठक जाता है।
(ख) कवि सूर्य को आता देखकर प्रसन्न हो जाता है।
(ग) कवि को सूर्योदय का दृश्य बहुत अच्छा लगता है।
(घ) सूर्य के सामने चंद्रमा को निस्तेज देखकर वह ठिठक जाता है।
4- अनुपयुक्त कथन छांटिए
(क) सूर्य का रथ नई किरणों का है
(ख) बादल सूर्य के सेवक हैं
(ग) चंद्रमा रात का राजा है
(घ) पक्षीगण सूर्य की फौज हैं
5- अनुपयुक्त समानार्थी कौन है
(क) कुसुम (ख) प्रसून (ग) पादप (घ) सुमन
उत्तर- 1-ख, 2-क, 3-घ, 4-घ, 5-ग
अपठित काव्यांश-7
खेत की धरती बने न बंजर, चले न
जादू-टोना।।
दुकिया दादी. अन्नो बेटी,
झूम-झूम कर गाएँ,
पकी फसल को डसनेवाले,
सफल नहीं हो पाएँ।।
सत्यमेव जयते" बन-बनके, खाएँ
भर-भर दौना।।
सुखुवा, दुखुवा, गंगू, मंगू,
खुद ही जोते-बोएं।
अपनी फसल आप ही कांटे,
और न ज्यादा रोएँ।।
जो खोया सो खोया भइया, वक्त नहीं
अब खोना।।
प्रगति पथ पर निर्माणों के,
नव स्वर संचानों।
समता की सुरसरि के,
सुख को भागीरथ जानो।।
स्वर्ग उतर आए धरती पर, चमके
कोना-कोना।
मिट्टी से सोना उपजाओ इस मिट्टी से सोना ।।
1- सफल कौन नहीं हो सकता
(क) पकी फसल को डसने वाले
(ख) पकी फसल को बोने वाले
(ग) पकी फसल रखने वाला
(घ) पकी फसल पकाने वाला
2- हमें.......... नहीं खोना चाहिए काव्यांश के आधार पर रिक्त स्थान की पूर्ति
कीजिए
(क) वक्त
(ख) धन
(ग) अन्न
(घ) खाना
3- सुख को क्या जानना है
(क) भागीरथ
(ख) कावेरी
(ग) ताप्ती
(घ) नर्मदा
4- कोना कोना कब चमकेगा?
(क) जब धरती पर स्वर्ग उतरेगा
(ख) जब धरती पर नर्क उतरेगा
(ग) जब धरती पर कलयुग उतरेगा
(घ) जब तक धरती पर भ्रष्टाचार होगा
5- सत्य कथन पर सही का चिन्ह लगाइए
(क) कवि ने मिट्टी में चांदी उपजाने का संदेश दिया है।
(ख) कवि ने मिट्टी से सोना उपजाने का संदेश दिया है।
(ग) कवि ने मिट्टी से अनाज उपजाने का संदेश दिया है।
(घ) कवि ने मिट्टी से अन्न उपजाने का संदेश दिया है।
उत्तर - 1-क, 2-क, 3-क, 4-क, 5-ख
अपठित
काव्यांश-8
अंबर बने सुखों की चादर, धरती बने
बिछौना ।
मिट्टी से सोना उपजाओ, इस मिट्टी
से सोना ।।
यह मिट्टी जगती की जननी, इसको करो
प्रणाम्।
कर्मयोग के साधन बनना, ही सेवा
का काम।।
हाली उठा हाथ से हल को, बीज प्रेम
के बोना।
चना, मटर, जौ, धान, बाजरा और गेहूँ की बाली।।
मिट्टी से सोना बन जाती, भर-भर
देती थाली।
दूध-दही पी-पी मुस्काए, मेरा
श्याम सलौना।।
हीरा, मोती, लाल, बहादुर, कह-कह तुम्हें पुकारें।
खुशहाली हर घर में लाए, बिगड़ी
दशा सुधारें।।
1- अंबर किसकी चादर बने
(क) दुखों
(ख) दास्तानों
(ग) भावनाओं
(घ) सुखों
2- यह मिट्टी किसकी जननी है?
(क) जगती
(ख) माता
(ग) पिता
(घ) पुत्र
3- '...............के साधक बनना।' पंक्ति में रिक्त स्थान की पूर्ति करिए
(क) हठयोग
(ख) भक्तियोग
(ग) ज्ञानयोग
(घ) कर्मयोग
4- श्याम सलौना क्या-क्या पीकर मुस्कुराता है?
(क) लस्सी
(ख) शरबत
(ग) दही
(घ) दूध-दही
5- खुशहाली हर घर में लाए, बिगड़ी
दशा.......।
(क) सुधारे
(ख) संवारे
(ग) गाड़े
(घ) फोड़े
उत्तर - 1-घ, 2-क, 3-घ, 4-घ, 5-क
अपठित
काव्यांश-9
क्या करोगे अब ?
समय का
जब प्यार नहीं रहा
सर्वसहा
पृथ्वी का
आधार
नहीं रहा
न
वाणी साथ है
न
पानी साथ है
न
कही प्रकाश है स्वच्छ
जब
सब कुछ मैला है आसमान
गंदगी
बरसाने वाले
एक
अछोर फैला है
कही
चले जाओ
विनती
नहीं है
वायु
प्राणप्रद
आदंकर
आदमी
सब
जग से गायब है
1. कवि ने धरती के
बारे में क्या कहा है …
(क)
रत्नगर्भा
(ख)
आधारशिला
(ग)
सर्वसहा
(घ)
माँ
2. 'आदमकद आदमी' से क्या
तात्पर्य है
(क)
मानवीयता से भरपूर आदमी
(ख)
ऊंचे कद का आदमी
(ग)
सम्पूर्ण मनुष्य
(घ)
सामान्य आदमी
3. आसमान की तुलना
किससे से की गयी है…
(क)
समुद्र से
(ख)
नीली झील से
(ग)
पतंग से
(घ) गंदगी
बरसाने वाले थैले से
4. प्राणदान का
तात्पर्य है
(क) प्राणों
को पूर्ण करने वाला
(ख) प्राण
प्रदान करने वाला
(ग) प्राणों
को प्रणाम करने वाला
(घ) प्राणों
को छीन लेने वाला
5. कवि समय से कब
और क्यों कतराना चाहते हैं
(क) किसी
के पास बात करने का समय नहीं
(ख) किसी
को दो क्षण बैठने का समय नहीं
(ग) किसी
को प्यार करने का समय नही
(घ) किसी
को गप मारने का समय नही
उत्तर - 1. (ग), 2. (क), 3. (घ), 4. (ख), 5. (ग)
अपठित गद्यांश
अपठित शब्द का
अर्थ है, जिसे पढ़ा नहीं गया है। अपठित गद्यांश का अर्थ होता है, ऐसा गद्यांश
जिसे पहले नहीं पढ़ा गया है। अपठित गद्यांश ऐसे गद्यांश होते हैं जिन्हें
विद्यार्थियों ने पाठ्य पुस्तक में नहीं पढ़ा है।
अपठित गद्यांश के प्रश्नों को हल करते समय ध्यान देने योग्य बातें-
Ø अपठित गद्यांश ध्यान से पढ़ें और उसके मूल भाव और
अर्थ को समझें।
Ø अपठित गद्यांश का बार-बार मौन वाचन करके उसे समझने का प्रयास करें।
Ø इसके पश्चात प्रश्नों को पढ़ें और गद्यांश में संभावित उत्तरों को रेखांकित करें।
Ø जिन प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट न हों, उनके उत्तर जानने हेतु गद्यांश को पुन: ध्यान से पढ़ें।
Ø प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में दें।
Ø उत्तर संक्षिप्त रखने का प्रयास करें।
Ø भाषा सरल और प्रभावशाली होनी चाहिए।
Ø प्रश्नों के उत्तर अपठित भाग पर ही आधारित होने चाहिए।
Ø यदि कोई प्रश्न शीर्षक देने के संबंध में हो तो ध्यान
रखें कि शीर्षक मूल कथ्य से संबंधित होना चाहिए।
Ø शीर्षक छोटा, सटीक और सारगर्भित होना चाहिए।
Ø शीर्षक गद्यांश में दी गई सारी अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व
करने वाला होना चाहिए।
Ø अंत में अपने उत्तरों को पुन: पढ़कर उनकी त्रुटियों (गलतियों)
को अवश्य दूर करें।
अपठित गद्यांश-1
राहे पर खड़ा है, सदा से ठूँठ नहीं है। दिन थे
जब वह हरा भरा था और उस जनसंकुल चौराहे पर अपनी छतनार डालियों से बटोहियों की थकान
अनजाने दूर करता था। पर मैंने उसे सदा ठूँठ ही देखा है। पत्रहीन, शाखाहीन, निरवलंब, जैसे पृथ्वी
रूपी आकाश से सहसा निकलकर अधर में ही टंग गया हो। रात में वह काले भूत-सा लगता है, दिन में उसकी
छाया इतनी गहरी नहीं हो पाती जितना काला उसका जिस्म है और अगर चितेरे को छायाचित्र
बनाना हो तो शायद उसका-सा ‘अभिप्राय’ और न मिलेगा। प्रचंड धूप में भी उसका सूखा शरीर उतनी
ही गहरी छाया ज़मीन पर डालता जैसे रात की उजियारी चांदनी में।जब से होश संभाला है, जब से आंख खोली
है, देखने का अभ्यास
किया है, तब से बराबर मुझे उसका निस्पंद, नीरस, अर्थहीन शरीर ही दिख पड़ा है।
पर पिछली पीढ़ी के जानकार कहते हैं कि एक जमाना था जब
पीपल और बरगद भी उसके सामने शरमाते थे और उसके पत्तों से, उसकी टहनियों और डालों से टकराती हवा की सरसराहट दूर
तक सुनाई पड़ती थी। पर आज वह नीरव है, उस चौराहे का जवाब जिस पर उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम
चारों और की राहें मिलती हैं और जिनके सहारे जीवन अविरल बहता है। जिसने कभी जल को
जीवन की संज्ञा दी, उसने निश्चय जाना होगा की प्राणवान जीवन भी जल की ही
भांति विकल, अविरल बहता है।
सो प्राणवान जीवन, मानव संस्कृति का उल्लास उपहार लिए उन चारों राहों की
संधि पर मिलता था जिसके एक कोण में उस प्रवाह से मिल एकांत शुष्क आज वह ठूँठ खड़ा
है। उसके अभाग्यों परंपरा में संभवतः एक ही सुखद अपवाद है – उसके अंदर का
स्नेहरस सूख जाने से संख्या का लोप हो जाना। संज्ञा लुप्त हो जाने से कष्ट की
अनुभूति कम हो जाती है।
1. जनसंकुल का क्या आशय है?
क) जनसंपर्क
ख) भीड़भरा
ग) जनसमूह
घ) जनजीवन
2. आम की छतनार
डालियों के कारण क्या होता था?
क) यात्रियों को ठंडक मिलती थी
ख) यात्रियों को विश्राम मिलता था
ग) यात्रियों की थकान मिटती थी
घ) यात्रियों को हवा मिलती थी
3. शाखाहीन, रसहीन, शुष्क वृक्ष को
क्या कहा जाता है?
क) नीरस वृक्ष
ख) जड़ वृक्ष
ग) ठूँठ वृक्ष
घ) हीन वृक्ष
4. आम के वृक्ष के
सामने पीपल और बरगद के शरमाने का क्या कारण था?
क) उसका अधिक हरा-भरा और सघन होना
ख) हवा की आवाज सुनाई देना
ग) अधिक फल फूल लगना
घ) अधिक ऊँचा होना
5. आम के अभागेपन
में संभवतः एक ही सुखद अपवाद था –
क) उसका नीरस हो जाना
ख) संज्ञा लुप्त हो जाना
ग) सूख कर ठूँठ हो जाना
घ) अनुभूति कम हो जाना
उत्तर - 1. ख, 2. ग, 3. ग, 4. क, 5. ख
अपठित गद्यांश-2
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों को
मानव-मात्र की समानता और स्वतंत्रता के प्रति जागरुक बनाने का प्रयत्न किया। इसी
के साथ उन्होंने भारतीयों के नैतिक पक्ष को जगाने और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न
भी किए। गांधी जी ने ऐसा क्यों किया? इसलिए कि वे मानव-मानव के बीच काले-गोरे, या ऊँच-नीच का
भेद ही मिटाना पर्याप्त नहीं समझते थे, वरन उनके बीच एक मानवीय स्वभाविक स्नेह और हार्दिक
सहयोग का संबंध भी स्थापित करना चाहते थे।
इसके बाद जब वे भारत आए, तब उन्होंने इस प्रयोग को एक बड़ा और व्यापक रुप दिया
विदेशी शासन के अन्याय-अनीति के विरोध में उन्होंने जितना बड़ा सामूहिक प्रतिरोध
संगठित किया, उसकी मिसाल
संसार के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। पर इसमें उन्होंने सबसे बड़ा ध्यान इस
बात का रखा कि इस प्रतिरोध में कहीं भी कटुता, प्रतिशोध की भावना अथवा कोई भी ऐसी अनैतिक बात न हो
जिसके लिए विश्व-मंच पर भारत का माथा नीचा हो। ऐसा गांधी जी ने इसलिए किया क्योंकि
वे मानते थे कि बंधुत्व, मैत्री, सदभावना , स्नेह-सौहार्द आदि गुण मानवता रूप टहनी के ऐसे पुष्प
हैं जो सर्वदा सुगंधित रहते हैं।
1. अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के पीड़ित होने का क्या
कारण था?
क) निर्धनता धनिकता पर आधारित भेदभाव
ख) रंग-भेद और सामाजिक स्तर से संबंधित भेदभाव
ग) धार्मिक भिन्ता पर आश्रित भेदभाव
घ) विदेशी होने से उत्पन्न मन-मुटाव
2. गांधी जी
अफ्रीकावासियों और भारतीय प्रवासियों के मध्य क्या स्थापित करना चाहते थे?
क) सहज प्रेम एवं सहयोग की भावना
ख) पारिवारिक अपनत्व की भावना
ग) अहिंसा एवं सत्य के प्रति लगाव
घ) विश्वबंधुत्व की भावना
3. भारत में
गांधीजी का विदेशी शासन का प्रतिरोध किस पर आधारित था?
क) संगठन की भावना पर
ख) नैतिक मान्यताओं पर
ग) राष्ट्रीयता के विचारों पर
घ) शांति की सदभावना पर
4. बंधुत्व, मैत्री आदि
गुणों की पुष्पों के साथ तुलना आधारित है –
क) उनकी सुंदरता पर
ख) उनकी कोमलता पर
ग) उनके अपनत्व पर
घ) उनके कायिक प्रभाव पर
5. गद्यांश का
उपयुक्त शीर्षक क्या होगा?
क) अफ्रीका में गांधी जी
ख) प्रवासी भारतीय और गांधी जी
ग) गांधी जी की नैतिकता
घ) गांधी जी और विदेशी शासन
उत्तर - 1. ख, 2. क, 3. क, 4. ग, 5. ग
अपठित गद्यांश-3
मनुष्य को
निष्कामभाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है। आशा
या निराशा के चक्र में फँसे बिना उसे निरंतर कर्तव्यरत रहना है। किसी भी कर्तव्य
की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किंतु मनीषियों
ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की संपत्ति अर्जित
करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में हैं अनेक बार ऐसा होता.है
कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते हैं, वह पूरा नहीं होता। ऐसे अवसर
पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं।
उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोबारा प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन
धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, वरन् उसके समस्त
जीवन को ही ढक लेता है। निराशा की गहनता के कारण लोग कभी-कभी आत्महत्या तक कर
बैठते हैं। मनुष्य का जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए।
विध्न-बाधाओं की, सफलता-असफलता की
तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्तव्य के मार्ग पर चलते रहने मैं जो आनंद एवं
उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है, ऐसा जीवन ही सफल है।
प्र 1 : मनुष्य को किस प्रकार कर्तव्य-पालन करना
चाहिए?
(क) निष्काम भाव से
(ख) सफलता-असफलता की चिंता किए बिना
(ग) आशा-निराशा के चक्र में फँसे बिना
(घ)
उपर्युक्त सभी
प्र 2 : मनीषियों ने सफलता की कुंजी किसे कहा है
(क) धन को
(ख) परिश्रम को
(ग) असफलता को
(घ) शारीरिक बल को।
प्र 3: असफल व्यक्ति क्या अर्जित करता है?
(क) अपयश
(ख) अनुभव की संपत्ति
(ग) धन-दौलत
(घ) आशा के पुष्प
प्र 4: कैसे
व्यक्तियों का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता हैं?
(क) जो असफल होने पर दोबारा प्रयत्न नहीं करते
(ख) जो परिश्रम से जी चुराते हैं
(ग). जो नित्य व्यायाम नहीं करते
(घ) जो धन-दौलत नहीं कमाते
प्र 5: जीवन
की सार्थकता किसमें है?
(क) हर समय सोते रहने में
(ख) बहुत सारा धन कमाने में
(ग)
कर्तव्य-मार्ग पर चलने के आनंद में
(घ) दूसरों से अपना काम निकालने में
उत्तर-
1. (घ) उपर्युक्त सभी 2. (ग) असफलता को 3. (ख) अनुभव
की संपत्ति
4. (क) जो असफल होने पर दोबारा प्रयत्न नहीं करते 5.
(ग) कर्तव्य-मार्ग पर चलने के आनंद में
अपठित गद्यांश-4
निरक्षरता किसी
भी राष्ट्र, समाज एवं स्वयं व्यक्ति के लिए कलंक है। निरक्षर व्यक्ति के पास
सोचने-समझने की स्वतंत्र शक्ति नहीं होती। न तो वह् सामाजिक विकास के बारे में सोच
सकता है, न तो व्यक्तिगत विकास के बारे में। निरक्षर व्यक्ति अच्छे-बुरे, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य
के बीच में अंतर नहीं कर पाता। निरक्षरता के कारण देश को अच्छे नागरिक नहीं मिल
पाते। उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान नहीँ हो पाता। उन्हें अपने
कीमती वोटों का ज्ञान नहीं होता। थोडे से पैसों के लालच में आकर वे अपने अमूल्य
वोट अयोग्य नेताओं को दे देते हैं और इस प्रकार देश का भविष्य गलत हाथों में पड़
जाता है। नेता निर्धारित समय तक अपनी मनमानी करते हैं। उन्हें यह ज्ञात होता है कि
इन लोगों को किस प्रकार मूर्ख बनाया जा सकता है। अत: देश में अज्ञानता तथा
निरक्षरता को जड़ से हटाने के लिए सामूहिक प्रयत्न आवश्यक है। इसके लिए
शिक्षा-व्यवस्था में परिवर्तन घर-घर शिक्षा का दीप जलाना होगा। उन्हें साक्षरता के
लाभों से अवगत कराना होगा। शिक्षण संस्थानों में भेदभाव एवं भ्रष्टाचार समाप्त
करना होगा तथा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुफ्त शिक्षा देनी होगी। हमारे भारत
देश का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हर नागरिक साक्षर होगा।
प्र 1: किसके कारण देश को अच्छे नागरिक नहीँ मिल पाते
हैं?
(क) गरीबी
(ख) निरक्षता
(ग) अमीरी
(घ) मुफ़्तखोरी
प्र 2: हमारे देश का भविष्य कब उज्जवल होगा?
(क) जब हर नागरिक साक्षर होगा।
(ख) जब सभी अमीर होंगे।
(ग) जब लोगों में लालच खत्म हो जाएगा।
(घ) जब सबको मुफ्त शिक्षा मिलेगी।
प्र 3: किस लालच में आकर लोग अपना अमूल्य वोट अयोग्य
नेताओं को दे देते हैं?
(क) पैसों के
(ख) कपडों के
(ग) मुफ़्त शिक्षा के
(घ) उपर्युक्त सभी
प्र 4: निरक्षर व्यक्ति किस-किसमें अंतर नहीं कर पाता
है?
(क) अच्छे-बुरे
(ख) उचित-अनुचित
(ग) कर्तव्य-अकर्तव्य
(घ) उपर्युक्त सभी
प्र 5: देश के नेता सत्ता में आने पर कैसा व्यवहार
करते हैं?
(क) मनमाना
(ख) अच्छा
(ग) मूर्खतापूर्ण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर
1. (ख) निरक्षता 2. (क) जब हर नागरिक साक्षर होगा। 3.
(क) पैसों के 4. (घ) उपर्युक्त सभी 5. (क) मनमाना
अपठित गद्यांश-5
"साहित्य का आधार जीवन है। इसी आधार पर साहित्य की
दीवार खड़ी होती है। उसकी अटारियां, मीनार और गुंबद बनते हैं। लेकिन बुनियाद मिट्टी के
नीचे दवी पड़़ी है। जीवन परमात्मा की सृष्टि है, इसलिए सुबोध है, सुगम है और मर्यादाओं
से परिमित है । जीवन परमात्मा को अपने कामों का जवाबदेह है या नहीं हमें मालूम
नहीं, लेकिन साहित्य
मनुष्य के सामने जवाबदेह है। इसके लिए कानून है जिनसे वह इधर-उधर नहीं जा सकता।
मनुष्य जीवनपर्यंत आनंद की खोज में लगा रहता है। किसी को यह रत्न, द्रव्य में
मिलता है, किसी को भरे-पूरे परिवार में, किसी को लंबे-चीड़े भवन में, किसी को ऐश्वर्य में । लेकिन
साहित्य का आनंद इस आनंद से ऊँचा है। उसका आधार सुंदर और सत्य हे। वास्तव में
सच्चा आनंद सुंदर और सत्य से मिलता है, उसी आनंद को दर्शाना वही आनंद उत्पन्न करना साहित्य
का उद्देश्य है।"
1- साहित्य और जीवन में गहरा संबंध है क्योंकि
(क) जीवन का मुख्य आधार साहित्य है
(ख) साहित्य जीवन की मजबूत दीवार है
(ग) साहित्य का आधार जीवन है
(घ) साहित्य का आनंद जीवन से ऊंचा है
2- मनुष्य किसकी खोज में जीवन भर लगा रहता है
(क) परमात्मा की
(ख) आनंद की
(ग) साहित्य की
(घ) रत्न द्रव्य भरे पूरे परिवार लंबे चौड़े भवन एवं
ऐश्वर्य को पाने की
3- साहित्य के आनंद का आधार है
(क) सुंदर और सत्य को पाना
(ख) जीवन
(ग) रत्न और ऐश्वर्य पाना
(घ) परमात्मा
4- परिमिति का अर्थ है
(क) सीमित
(ख) दबा हुआ
(ग) विस्तृत
(घ) फंसा हुआ
5- 'लंबे चौड़े भवन में' वाक्य में लंबे चौड़े
व्याकरण की दृष्टि से क्या है
(क) क्रियाविशेषण है
(ख) संज्ञा है
(ग) क्रिया है
(घ) विशेषण है
उत्तर - 1-ग, 2-ख, 3- क, 4- क, 5घ
अपठित गद्यांश-6
निदा की ऐसी ही
महिमा है। दो-चार निंदको को एक जगह बैठकर निंदा में निमग्न देखिए और तुलना कीजिए,
दो चार ईश्वर भक्तों से जो रामधुन गा रहे हैं। निंदको
की-सी एकाग्रता, परस्पर आत्मीयता, निमग्नता भक्तों में दुरलभ
है। इसलिए संतों ने निंदको को आंगन कुटी छवाय पास रखने की सलाह दी है कुछ 'मिशनरी' निंदक मैने देखे
हैं। उनका किसी से बैर नहीं, धूप नहीं। वे किसी का बुरा नहीं सोचते पर चीबीस पंटे
वे निंदा-कर्म में वात पवित्र भाव से लगे रहते हैं कि ये प्रसंग आने पर अपने बाप
की पगड़ी भी उसी आनंद से उछालते हैं, जिस आनंद से अन्य लोग दुश्मन की। निंदा इनके लिए टॉनिक
होती है। इयां-ट्वेष से प्रेरित निंदा भी होती है। वह ईया-वेष से चौबीसों घंटे
जलता है और निदा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निदक बड़ा दयनीय होता
है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात
श्वान जैसा भौकता है। ईष्य्या-दूवेष से प्रेरित निंदा करने वाले को कोई दंड देने
की जरूरत नहीं है। वह निंदक बेचारा स्वयं दंडित होता है। जाप चैन से सोझा और वह
जलन के कारण सो नहीं पाता । उसे और क्या दंड चाहिए निरंतर अच्छे काम करते जाने से
उसका दंड भी सख्त होता जाता है; जैसे-एक कवि ने एक अच्छी कविता लिखी, ईष्यंग्रस्त
निदक की कष्ट होगा अब अगर एक और अच्छी कविता लिख दी, तो उसका कष्ट दुगुना हो
जाएगा।
1- निंदको की सी एकाग्रता, आत्मीयता व निमग्नता किसमें
दुर्लभ है?
(क) साधारण लोगों में
(ख) ईश्वर भक्तों में
(ग) शिक्षितों में
(घ) नास्तिकों में
2- निंदको को पास रखने की सलाह किसने दी है
(क) संतो ने
(ख) साथियों ने
(ग) भाग्यवान ने
(घ) पड़ोसियों ने
3- निंदा-कर्म से पवित्र भाव से कौन लगा रहता है
(क) निंदक
(ख) पड़ोसी
(ग) अपने रिश्तेदार
(घ) मिशनरी निंदक
4- ईर्ष्या, द्वेष, की आग में जलने वाला शांति का अनुभव कैसे करता है
(क) कार्बन डाइऑक्साइड से
(ख) मिट्टी डालकर
(ग) निंदा का जल छिड़ककर
(घ) भगवत भजन करके
5- कवि की अच्छी कविता पर ईर्ष्याग्रस्त निंदक कैसा
अनुभव करता है
(क) कष्ट का
(ख) सुख का
(ग) खुशी का
(घ) प्रसन्नता का
उत्तर - 1-ख, 2-अ, 3-घ, 4-ग, 5-अ
अपठित गद्यांश-7
"सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के
लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का
संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष
रूप से प्रेरणा देनेवाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को
सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनंद ही उत्साह कहलाता है उदाहरण के
लिए दान देनेवाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है
धन-त्याग का साहस । यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है तो उसे उत्साह
से किया गया दान कहा जाएगा उत्साह आनंद और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में
किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केंद्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के फल
पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनंद मिलता
है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनंद का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं क्योंकि
उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनंद का
अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारंभ होने पर ही उसका अनुभव कर
लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने
के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य
करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढनिश्चयी होता है।"
1- उत्साह का प्रमुख लक्षण है
(क) जोश
(ख) साहस
(ग) आनंद
(घ) आनंद और जोश
2- सच्चे वीर वे होते हैं
(क) जो फल पाने के लिए उत्साह दिखाते हैं
(ख) जो कर्म भाव से उत्साह दिखाते हैं
(ग) जो निष्काम भाव से उत्साह दिखाते हैं
(घ) जो आनंद विनोद के लिए उत्साह दिखाते हैं
3- उत्साह के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है
(क) दुख
(ख) निराशा
(ग) वैराग्य
(घ) आलस्य
4- 'सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के
लिए प्रेरणा देता है।' उपवाक्य का प्रकार है
(क) प्रधान उपवाक्य
(ख) विशेषण उपवाक्य
(ग) क्रिया विशेषण उपवाक्य
(घ) संज्ञा उपवाक्य
5- केंद्रित और अधिकता में क्रमशः प्रत्यय इस प्रकार है
(क) द्रित, ता
(ख) ईत, आ
(ग) इत, ता
(घ) ईत, ता
उत्तर - 1-घ, 2-ख, 3-घ, 4-ख, 5-ग
अपठित गद्यांश-8
विद्यार्थी जीवन
ही वह समय है जिसमें बच्चों के चरित्र, व्यवहार, आचरण को जैसा चाहे, वैसा रूप दिया जा सकता है।
यह अवस्था भावी वृक्ष की उस कोमल शाखा की भाँति है, जिसे जिधर चाहो मोड़ा जा
सकता है। पूर्णतः विकसित वृक्ष की शाखाओं को मोड़ना संभव नहीं। उन्हें मोड़ने का
प्रयास करने पर वे टूट तो सकती हैं पर मुड़ नहीं सकतीं। छात्रावस्था उस श्वेत चादर
की तरह होती है, जिसमें जैसा प्रभाव डालना हो, डाला जा सकता है। सफेद चादर
पर एक रंग जो चढ़ गया, सो चढ़ गया, फिर से वह पूर्वावस्था को प्राप्त नहीं हो सकती।
इसीलिए प्राचीन काल से ही विद्यार्थी जीवन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। इसी
अवस्था से सुसंस्कार और सद्वृतियाँ पोषित की जा सकती हैं। इसीलिए प्राचीन समय में
बालक को घर से दूर गुरुकुल में रहकर कठोर अनुशासन का पालन करना होता था।
1- व्यवहार को सुधारने का सर्वोत्तम समय होता है
(क) प्रौढ़ावस्था
(ख) युवावस्था
(ग) वृद्धावस्था
(घ) छात्रावस्था
2- छात्रों को गुरुकुल में छोड़ा जाता था
(क) कठोर अनुशासन के लिए
(ख) घर से दूर रखने के लिए
(ग) अच्छे संस्कार विकसित करने के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं
3- छात्रावस्था कि उपयुक्त तुलना की गई है
(क) विकसित वृक्ष से
(ख) सफेद चादर से
(ग) अविकसित वृक्ष से
(घ) वृक्ष की विकसित शाखा से
4- इनमें से किस शब्द में उपसर्ग का प्रयोग नहीं किया
गया है
(क) महत्त्व
(ख) सुसंस्कार
(ग) अनुशासन
(घ) अविकसित
5- प्रस्तुत गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक है
(क) चरित्र और व्यवहार
(ख) कठोर अनुशासन
(ग) विद्यार्थी जीवन
(घ) छात्र एक वृक्ष
उत्तर - 1-घ, 2-क, 3-ख, 4-क, 5-ग
अपठित गद्यांश-9
भारतीय मनीषी
हमेशा ही इच्छा और अनिच्छा के बारे में सोचता रहा है। आज जो कुछ हम हैं उसे एक
लालसा में सिमटाया जा सकता है। यानी जो कुछ भी हम है वह सब अपनी इच्छा के कारण से
हैं। यदि हम दुखी हैं, यदि हम दास्ता में हैं, यदि हम अज्ञानी हैं, यदि हम अंधकार
में डूबे हैं, यदि जीवन एक लंबी मृत्यु है तो केवल इच्छा के कारण से
ही है।
क्यों है यह दुख? क्योंकि हमारी इच्छा पूरी
नहीं हुई। इसलिए यदि आपको कोई इच्छा नहीं है तो आप निराश कैसे होंगे? यदि कहीं आप
निराश होना चाहते हैं तो और अधिक इच्छा करें, यदि आप और दुखी होना चाहते
हैं तो अधिक अपेक्षा करें, अधिक लालसा करें और अधिक आकांक्षा करें, इससे आप और अधिक
दुखी हो ही जाएंगे। यदि आप सुखी होना चाहते हैं तो कोई इच्छा न करें। यही आंतरिक
जगत में काम करने का गणित है। इच्छा ही दुख को उत्पन्न करती है।
1‐ भारतीय मनीषी के चिंतन का विषय क्या है
(क) जीवन मृत्यु
(ख) जीवन आत्मा
(ग) इच्छा अनिच्छा
(घ) प्रकृति पुरुष
2- इच्छा का जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है
(क) आनंद देती है
(ख) सुख देती है
(ग) लालसा बढ़ाती है
(घ) कार्य क्षमता बढ़ाती है
3- मानव के लिए जीवन एक लंबी मृत्यु कब बन जाता है
(क) बीमारी में
(ख) सुख में
(ग) हर्ष में
(घ) इच्छाओं के बढ़ने से
4- लेखक ने आंतरिक जगत में काम करने का गणित किसे कहा है
(क) भक्ति करने को
(ख) इच्छा न करने को
(ग) विनम्र रहने को
(घ) कष्ट भोगने को
5- लालसा शब्द के दो पर्यायवाची हैं
(क) इच्छा, आकांक्षा
(ख) इच्छा, बल
(ग) बल, आकांक्षा
(घ) आकांक्षा, निराशा
उत्तर- 1-ग, 2-ख, 3-घ, 4-ख, 5-क
अपठित गद्यांश-10
जिस विद्यार्थी
ने समय की कीमत जान ली वह सफलता को अवश्य प्राप्त करता है। प्रत्येक विद्यार्थी को
अपनी दिनचर्या की समय-सारणी अथवा तालिका बनाकर उसका पूरी दृढ़ता से पालन करना
चाहिए। जिस विद्यार्थी ने समय का सही उपयोग करना सीख लिया उसके लिए कोई भी काम
करना असंभव नहीं है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कोई काम पूरा न होने पर समय की दुहाई
देते हैं। वास्तव में सच्चाई इसके विपरीत होती है। अपनी अकर्मण्यता और आलस को वे
समय की कमी के बहाने छिपाते हैं। कुछ लोगों को अकर्मण्य रह कर निठल्ले समय बिताना
अच्छा लगता है। ऐसे लोग केवल बातूनी होते हैं। दुनिया के सफलतम व्यक्तियों ने सदैव
कार्यव्यस्तता में जीवन बिताया है। उनकी सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग रहा है। दुनिया
में अथवा प्रकृति में हर वस्तु का समय निश्चित है । समय बीत जाने के बाद कार्य
फलप्रद नहीं होता।
1- विद्यार्थी को सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है
(क) समय की दुहाई देना
(ख) समय की कीमत समझना
(ग) समय पर काम करना
(घ) दृढ़ विश्वास बनाए रखना
2- कुछ लोग समय की कमी के बहाने क्या छुपाते हैं
(क) अपनी अकर्मण्यता और आलस्य
(ख) अपना निठल्लापन
(ग) अपनी विभिन्न कमियां
(घ) अपना बातूनीपन
3- दुनिया के सफलतम व्यक्तियों की सफलता का रहस्य क्या
है
(क) समय का पालन
(ख) समय का प्रयोग
(ग) समय की कीमत
(घ) समय का सदुपयोग
4- कार्य किस स्थिति में फलप्रद नहीं होता
(क) समय न आने पर
(ख) समय कम होने पर
(ग) समय बीत जाने पर
(घ) समय अधिक होने पर
5- अकर्मण्यता शब्द में मूल शब्द एवं उपसर्ग अलग करके
लिखिए
(क) अकर्मण्य+ता
(ख) अ+कर्मण्यता
(ग) अक+र्मण्यता
(घ) अकर्म+णूयता
उत्तर- 1ख, 2क, 3घ, 4ग, 5ख
अपठित गद्यांश-11
मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है। समाज में उसके मित्र भी होते हैं, शत्रु भी, परिचित भी, अपरिचित भी।
जहाँ तक शत्रुओं, परिचितों और अपरिचितों का प्रश्न है, उन्हें पहचानना
बहुत कठिन नहीं होता, किंतु मित्रों को पहचानना कठिन होता है। मुख्यतः
सच्चे मित्रों को पहचानना बहुत कठिन होता है । यह प्रायः देखा गया है कि एक और तो
बहुत से लोग अपने-अपने स्वार्थवश सम्पन्न, सुखी और बड़े आदमियों के
मित्र बन जाते हैं या ज्यादा सही यह होगा कि यह दिखाना चाहते हैं कि वे मित्र हैं।
इसके विपरीत जहाँ तक गरीब, निर्धन और दुःखी लोगों का प्रश्न है मित्र बनाना तो
दूर रहा, लोग उनकी छाया से भी दूर भागते हैं। इसीलिए कोई व्यक्ति हमारा वास्तविक
मित्र है या नहीं, इस बात का पता हमें तब तक नहीं लग सकता जब तक हम कोई
विपत्ति में न हों। विपत्ति में नकली मित्र तो साथ छोड़ देते हैं और जो
मित्र साथ नहीं छोड़ते, वास्तविक मित्र वे ही होते
हैं। इसीलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि विपत्ति मित्रों की कसौटी है।
1- समाज में किसको पहचानना कठिन है
(क) सच्चे मित्र को
(ख) शत्रु को
(ग) सदाशय व्यक्ति को
(घ) चालाक व्यक्ति को
2- संपन्न लोगों से लोग कैसा व्यवहार करते हैं
(क) उनसे लोग ईर्ष्या करते हैं
(ख) लोग उनके मित्र बन जाते हैं
(ग) लोग उनसे उदासीन रहते हैं
(घ) उनकी छाया भी नहीं छूते
3- सच्चे मित्र की पहचान कब होती है?
(क) विपत्ति की घड़ी में
(ख) सुख की घड़ी में
(ग) मिलने जुलने पर
(घ) मेलो उत्सव में
4- वास्तविक शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय है
(क) वास्तव+ईक
(ख) वास्तव+इक
(ग) वास्तव+विक
(घ) वास्त+विक
इस गद्यांश का उचित शीर्षक चुनिए
(क) मनुष्य
(ख) समाज
(ग) सच्चा मित्र
(घ) मित्रता
उत्तर- 1क, 2ख, 3क, 4ख, 5ग
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